ज़िंदगी के इस बदलते हुए मंज़र में, जहाँ खुशी के साथ-साथ ग़म और आराम के साथ-साथ मुश्किलें भी होती हैं, एक मुसलमान ख़ुद को उम्मीद और निराशा की कशमकश के बीच खिंचा हुआ पाता है, फिर भी वो हर हाल में मज़बूती से खड़ा रहकर रोशन भविष्य का इंतज़ार करता है। इस्लामी जीवन-दर्शन में किसी को हमेशा के आराम और सुकून की गारंटी नहीं दी गई है, बल्कि ये दुनिया मन की आज़माइश और रूह की पाकी की जगह है। यहाँ हर कड़वाहट अपने अंदर एक छुपी हुई मिठास और गहरा मतलब रखती है, जिससे इंसान को वो सब कुछ सीखने को मिलता है जो सिर्फ़ खुशहाली के दिनों में कभी हासिल नहीं हो सकता।
चुनौतियाँ: रूह का ईश्वरीय स्कूल
इस्लामी सोच में मुश्किलों को तक़दीर का कोई अंधा वार या सिर्फ़ सज़ा नहीं समझा जाता, बल्कि उन्हें ज़िंदगी के स्कूल का एक ज़रूरी सबक माना जाता है, जिसमें मन को सुधारने और इरादे को मज़बूत करने का सबक सिखाया जाता है। ये जीवन असल में ख़ुद को पवित्र करने का और ज्ञान का एक सफ़र है, जिसमें मर्द और औरत दोनों को समय के उतार-चढ़ाव का सामना एक मज़बूत इरादे और बेहतरीन सब्र के साथ करना होता है। इस्लामी नज़रिए में सब्र और शुक्र दो बड़े स्तंभ हैं; हर आज़माइश का सामना या तो सब्र के साथ किया जाना है या एक क़दम आगे बढ़कर सब्र के साथ शुक्र को शामिल करके अपनी ईमान की ताक़त का सबूत देना है।
रोज़ी और दुनिया की नेमतें
अगर दुनिया में किसी चीज़ की कमी तकलीफ़ का कारण बनती है, तो इस्लामी सोच में ये ख़ुद को दोबारा खोजने का बुलावा भी है। रोज़ी के लिए मेहनत करना इबादत का हिस्सा है; काम का मक़सद सिर्फ़ रोज़ी कमाना नहीं, बल्कि लोगों की सेवा करना और अपनी नीयत को साफ़ बनाना भी है। नौकरी का छूट जाना सफ़र का अंत नहीं, बल्कि नए रास्तों की तरफ़ आपकी रहनुमाई है, रोज़ी के नए दरवाज़े खुलने का इशारा है, आपको सिर्फ़ अपने खालिक पर यक़ीन रखते हुए, हिम्मत और हौसले के साथ आँखें खुली रखकर मेहनत करनी है।
बीमारी: ज़िंदगी का शिक्षक
इस्लामी सोच में बीमारी को सज़ा के तौर पर नहीं देखा जाता, बल्कि उसे एक ऐसा उस्ताद समझा जाता है जो इंसान को उसकी अपनी असलियत की तरफ़ लौटाता है, उसे सेहत की नेमत और ज़िंदगी की क़ीमत से वाक़िफ़ कराता है। दर्द के पल रूह की सफ़ाई और ईश्वर की रहमत के पहलुओं पर गहराई से सोचने-विचारने का मौक़ा देते हैं। जब जिस्म कमज़ोर होता है, तो वो रूह और अक़्ल को ध्यान का केंद्र बनाने और समझ के दरवाज़े खोलने पर मजबूर करता है, और इस काम में वो ईश्वरीय प्यार और मेहरबानी है जिसे सिर्फ़ तजुर्बा करने वाला ही समझ सकता है। बस शर्त सिर्फ़ इतनी है कि ईमान को पत्थर की तरह मज़बूत रखा जाए।
मौत: ऐसी मोहब्बत जो कभी ख़त्म नहीं होती
एक मुसलमान के लिए किसी अपने को खो देना सिर्फ़ एक ख़ामोश दर्द नहीं, बल्कि ये यादों का कभी न ख़त्म होने वाला सिलसिला और रूहानी बुलंदियों की तरफ़ एक दरवाज़ा है। मौत के बाद उनसे मोहब्बत नेक कामों और जाने वालों के लिए दुआ के रूप में ज़ाहिर होती है। रूहानी सोच में ये रिश्ता ख़त्म नहीं होता, बल्कि और ज़्यादा मज़बूत और बड़ा हो जाता है। मौत एक आईने की तरह बन जाती है जिसमें ज़िंदा इंसान मोहब्बत और वफ़ा की एक नई तस्वीर देखता है। किसी अपने की मौत मोमिन के दिल को तोड़ती नहीं बल्कि उसमें सेवा का जज़्बा पैदा करती है और ज़िंदगी के मतलब पर सोचने पर मजबूर करती है।
सब्र: सोच की महानता और इरादे की ताक़त
मुसलमानों के लिए सब्र रूहानी बुलंदी की वो सीढ़ी है जो मन को बेचैनी और घबराहट से बचाती है, और इंसान को समझ और मज़बूती की राह पर चलाती है। एक मुसलमान के लिए सब्र का मतलब हाथ पर हाथ धरकर बैठना नहीं, बल्कि ये एक अंदरूनी हरकत है जो रूह को सुकून और यक़ीन देती है। एक ऐसी दुनिया में जो रफ़्तार और ऊपरी दिखावे का जश्न मनाती है, सब्र एक मज़बूत कला और एक महान रवैया है जिसके ज़रिए अच्छे अख़लाक़ और ऊँचे मक़सद हासिल किए जाते हैं।
कोशिश और भरोसा: तक़दीर की धुन पर नाचना
इस्लामी सोच इंसान को ये सिखाती है कि वो लगातार मेहनत और पुरसुकून भरोसे के बीच संतुलन बनाए। उसका काम सच्ची नीयत से भरा हो और उसकी कोशिश इस यक़ीन के साथ हो कि नतीजे वही होंगे जो उसके रब ने उसके लिए तय किए हैं। एक मुसलमान का हर काम भलाई पर आधारित है: वो मेहनत करता है और यक़ीन रखता है कि देने वाला माँगने वाले से कहीं ज़्यादा बड़ा और दरियादिल है। वो तक़दीर की धुन पर सुकून और यक़ीन के साथ नाचता है।
शुक्र: नेमतों को देखने वाली आँख
इस्लामी सोच में शुक्र सिर्फ़ अच्छे हालात पर शुक्रिया अदा करना नहीं, बल्कि ये एक ऐसी समझ है जो मुश्किलों के बीच भी अच्छाई को पहचानती है, और सबसे मुश्किल हालात में भी अच्छी सोच पैदा करती है। शुक्र करने वाला तंगी में भी खुलापन देखता है, मुसीबत में भी सुकून पाता है, आज़माइशों के वक़्त नेमतों पर नज़र रखता है, दुनिया को बनाने वाले के साथ अपना रिश्ता मज़बूत रखता है और यक़ीन रखता है कि रात चाहे जितनी काली हो, सुबह का आना तो ज़रूरी है।
ज़िंदगी: एक अमानत और एक मक़सद
इस्लामी सोच एक मोमिन को ये दावत देती है कि वो हर आज़माइश को ख़ुद को पाकीज़ा बनाने और सोचने-विचारने का मौक़ा बनाए, हर तजुर्बे को बुलंदी का ज़रिया बनाए, और ये बात अच्छे से समझ ले कि ज़िंदगी बेतरतीब घटनाओं का सिलसिला नहीं, बल्कि एक समझदारी भरी योजना है जो महानता और रोशनी की राहें बनाती है। इस्लाम की नज़र में समझदार वो है जो हमेशा ईमान के केंद्र की तरफ़ लौटता है, आज़माइश में सब्र और शुक्र करता है, हर तजुर्बे से सीख और समझ की एक नई कहानी लिखता है, और हर तूफ़ान में रहमत और रोशनी की ईश्वरीय निशानियों को पहचानता है या पहचानने की कोशिश करता है। आज़माइशें न उसे निराश करती हैं, न उसका दिल तोड़ती हैं, और न ही उसके जज़्बे को नुक़सान पहुँचाती हैं।
तक़दीर पर मज़बूत ईमान और सब्र और शुक्र की इस्लामी सीख पर अमल करके इंसान पहाड़ जैसी समस्याओं को भी न सिर्फ़ हल कर सकता है बल्कि उन्हें अपनी तरक़्क़ी के लिए सीढ़ी बना सकता है।
अहमद सुहैब नदवी
अल-इमाम गज़ेट
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Al-Emam Al-Nadwi Education & Awakening Center
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